व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> असीम आनंद की ओर असीम आनंद की ओरसिस्टर शिवानी
|
5 पाठकों को प्रिय 207 पाठक हैं |
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
संसार में आनंद के अभाव का कारण है - निर्भरता। प्रसन्नता का अर्थ यह नहीं कि हम किसी ‘वस्तु’ या ‘व्यक्ति’ पर निर्भर रहें या इसे किसी ‘स्थान’ पर खोज़ सकें। हम अपने जीवन में हर चीज़ को व्यवस्थित करने के नाम पर निरंतर अपनी प्रसन्नता को स्थगित करने चले जाते हैं। प्रसन्नता तभी संभव हैं जब हम प्रत्येक व्यक्ति को, प्रत्येक क्षण व परिस्तिथि में उसी रूप में स्वीकार कर सकें, जैसे कि वे हैं। इसका अर्थ होगा कि हमें दूसरों को परखने या उनका प्रतिरोध करने की आदत पर रोक लगानी होगी।
प्रसन्नता या आनंद का अर्थ हैं अपने दायित्व के प्रति जागृत होना व उसे स्वीकार करना। जब हम पवित्रता, शांति एवं प्रेम के अपने सच्चे अस्तित्व के साथ जुड़ी भावनाओं व विचारों का चुनाव करते हैं तो जैसे सब कुछ परिवर्तित हो उठता हैं : हम दूसरों से माँगने के स्थान पर उनके साथ बाँटने लगते हैं; संग्रह करने के बजाय त्याग करना सीख जाते हैं; अपेक्षाओं के स्थान पर स्वीकृति को आश्रय देने लगते हैं; भविस्य और अतीत को छोड़ वर्तमान में जीने लगते हैं। हम ख़ुशी, संतोष व परमानंद से भरपूर जीवन जी सकते हैं क्योंकि हमारे पास चुनने का विकल्प तथा शक्ति हैं। प्रसन्नता एक निर्णय हैं।
प्रसन्नता या आनंद का अर्थ हैं अपने दायित्व के प्रति जागृत होना व उसे स्वीकार करना। जब हम पवित्रता, शांति एवं प्रेम के अपने सच्चे अस्तित्व के साथ जुड़ी भावनाओं व विचारों का चुनाव करते हैं तो जैसे सब कुछ परिवर्तित हो उठता हैं : हम दूसरों से माँगने के स्थान पर उनके साथ बाँटने लगते हैं; संग्रह करने के बजाय त्याग करना सीख जाते हैं; अपेक्षाओं के स्थान पर स्वीकृति को आश्रय देने लगते हैं; भविस्य और अतीत को छोड़ वर्तमान में जीने लगते हैं। हम ख़ुशी, संतोष व परमानंद से भरपूर जीवन जी सकते हैं क्योंकि हमारे पास चुनने का विकल्प तथा शक्ति हैं। प्रसन्नता एक निर्णय हैं।
|
लोगों की राय
No reviews for this book